चिडाणु दी सग्रांद Sankrati in हिमाचल

चिडाणु दी सगरांद हिमाचल मैं धूम धाम से मनाई जाती थी, अब भी मनाया जाता है | पहले लोग अपने घरों में पशु जैसे गाये, भैंसे और अन्य भेड़, बकरियां ज्यादा पालते थे | अब बहुत लोगों ने येह सब छोड़ हे दिया है तो लोग अपनी पहाड़ी सस्कृति भी धीरे-2 भूल रहे है |

चिडाणु दी सगरांद हिमाचल मैं धूम धाम से मनाई जाती थी, पहले लोग अपने घरों में पशु जैसे गाये, भैंसे और अन्य भेड़, बकरियां ज्यादा पालते थे | अब बहुत लोगों ने येह सब छोड़ हे दिया है तो लोग अपनी पहाड़ी सस्कृति भी धीरे-2 भूल रहे है |

आजकल की नई पीढ़ी तो बिलकुल अपनी हिमाचली देसी फेस्टिवल को भूल रही है ,  मैं यंहा पर किसी को दोष नहीं दे रहा हूँ, टाइम ही बदल गया है। अपने हिमाचली कल्चर को संभाल कर रखा है , पुराने लोगों का कितना बड़ा योगदान रहा है|

चिडाणु, चिडनु होता क्या है?

यह पर्व पशुओं कि रक्षा के लिए सावन मास की सक्रांति मनाया जाता है। चिडाणु, चिडडन, चिडनु पशुओं में एक कीड़े को कहा जाता है , यह एक छोटे खटमल की तरह कीड़ा होता। इस दिन लोग अपने पशुओं से कुछ कीड़े इकठे करते  है, और शाम (7-8) बजे को उनको आटे के पेड़े में मिलाकर जंगल में जलाया जाता है |

जंहा से यह पशु घास चरने जाते हैं । सभी गांव के लोग एकठा होकर जलाते है और गीत भी गाते हैं। कहा जाता है की इस पर्ब के बाद पूरा साल पशुओं में कोई बीमारी यह कोई अन्य समस्या नहीं होती । (थोड़ी -2 दूर में थोड़ा बहुत बदलाब तो होता है । लोग अपने-२ ढंग से मनाते हैं )

अभी भी अपने पुराने लोग , अपने पहाड़ी कल्चर को नहीं भूलते, इसलिए अभी भी हमे पहाड़ी सस्कृति और हिमाचली होने पर अच्छा लगता है|

इस दिन भगबान की पूजा होती है। लोग अपने अपने घरो में अच्छा अच्छा भोजन, जैसे के तली हुई रोटिंया, आलू, पूरी आदि बनाते है और एक दूसरे के यंहा बाँटते भी हैं परिबार के साथ मिल् के खाते हैं ।

यह पर्व हिमाचल में हमीरपुर, काँगड़ा, मंडी और बिलासपुर में मनाया जाता है। हिमाचल के अन्य जगह पर भी मनाते है।

गुजारिश है अपने सभी हिमाचली लोगों से अपनी सस्कृति को न भूलें और न किसी को भूलने न दे ।

यह हमने कुछ अपना अनुभव, कुछ लोगों से कुछ वेबसाइट से लिया हुआ है अगर कोई गलती हो तो हमे माफ़ कर दीजिये ।

अगर और इसमें जानकारी है तो कमेंट में पोस्ट कर देना, हम उसको भी साइट पर डाल देंगे।